राजमा की खेती:राजमा, जिसे एक पौष्टिक दलहनी फसल कहा जाता है, देशभर में एक लोकप्रिय फसल बन चुका है। इसके सेवन से स्वास्थ्य को बहुत लाभ होता है और इसकी खेती किसानों के लिए एक आवासीय विकल्प हो सकती है। इस लेख में, हम जानेंगे कि कैसे राजमा की खेती को बना सकते हैं लाभकारी और उन्नत। अगर आप राजमा की खेती को अपनातें हैं तो 3-4 महीने में लाखों का इनकम कर सकतें हैं।
राजमा की खेती के लिए उन्नत किस्में
राजमा की खेती करते समय, किसानों को ध्यान में रखना चाहिए कि वे सिर्फ उन्नत किस्मों की बुआई करें, जो उपज और मुनाफा में बेहतर हो। कुछ उन्नत किस्में हैं – पी.डी.आर-14 (उदय), मालवीय-137, वी.एल.-63, अम्बर (आई.आई.पी.आर-96-4), उत्कर्ष (आई.आई.पी.आर-98-5), और अरूण।
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मिट्टी और बुवाई
मिट्टी का चयन बहुत महत्वपूर्ण है, और धरती में दोमट और हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त हैं। बुआई से पहले, मिट्टी को पलटने वाले हल या कल्टीवेटर का उपयोग करके खेत को तैयार किया जा सकता है। बुआई के समय में, मिट्टी में पर्याप्त नमी की आवश्यकता है, और बीजों को 120 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थीरम के साथ डालना चाहिए।
उर्वरक और सिंचाई
राजमा में राइजोबियम ग्रंथियों की कमी के कारण नाइट्रोजन की अधिक मात्रा की जरूरत होती है। 120 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फेट और 30 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर देना आवश्यक है। सिंचाई की आवश्यकता भी है, और बुआई के समय 60 किग्रा नाइट्रोजन और फॉस्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा दी जानी चाहिए। सिंचाई को बुआई के बाद पहले हफ्ते में करना चाहिए, और इसके बाद हल्के रूप में प्रतिमाह सिंचाई की जानी चाहिए।
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निराई-गुड़ाई और रोग नियंत्रण
पौधों पर गुड़ाई और निराई का सही समय पर करना बहुत महत्वपूर्ण है। गुड़ाई के समय, मिट्टी को पौधे पर ढ़लने के लिए थोड़ा सा मिट्टी का छिड़काव करना चाहिए। रोगों को नियंत्रित करने के लिए, पेन्डीमेथलीन या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करना सुरक्षित हो सकता है।
फसल कटाई और भंडारण
जब राजमा की फलियां पूरी तरह से पक जाती हैं, तो उन्हें काट लेना चाहिए। सुखने के बाद फलियां चटकने लगती हैं, और इसके बाद, फलों को मड़ाई या काटकर निकाला जा सकता है।